कर्म का फल व्यक्ति को उसी तरह ढूंढ लेता है, जैसे कोई बछड़ा सैकड़ों गायों के बीच अपनी मां को ढूंढ लेता है।
आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है, ना ही इसे जलाया जा सकता है, ना ही पानी से गिला किया जा सकता है, आत्मा अमर और अविनाशी है।
मैं किसी के भाग्य का निर्माण नहीं करता और ना ही किसी के कर्मो के फल देता हूँ।
केवल मन ही किस का मित्र और शत्रु होता है।
अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता स बेहतर है।
कर्म का फल व्यक्ति को उसी तरह ढूंढ लेता है, जैसे कोई बछड़ा सैकड़ों गायों के बीच अपनी मां को ढूंढ लेता है।
आत्मा न जन्म लेती है, न मरती है, ना ही इसे जलाया जा सकता है, ना ही पानी से गिला किया जा सकता है, आत्मा अमर और अविनाशी है।
मैं किसी के भाग्य का निर्माण नहीं करता और ना ही किसी के कर्मो के फल देता हूँ।
व्यक्ति या जीव का कर्म ही उसके भाग्य का निर्माण करता है।
व्यक्ति या जीव का कर्म ही उसके भाग्य का निर्माण करता है ।
आत्मा पुराने शरीर को वैसे ही छोड़ देती है, जैसे मनुष्य पुराने कपड़ों को उतार कर नए कपड़े धारण कर लेता है।
मैं सभी प्राणियों के ह्रदय में विद्यमान हूँ ।
ऐसा कुछ भी नहीं , चेतन या अचेतन , जो मेरे बिना अस्तित्व में रह सकता हो ।
वह जो मृत्यु के समय मुझे स्मरण करते हुए अपना शरीर त्यागता है, वह मेरे धाम को प्राप्त होता है. इसमें कोई शंशय नहीं है ।
वह जो इस ज्ञान में विश्वास नहीं रखते, मुझे प्राप्त किये बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते हैं ।
कोशिश की जाए तो अपने अशांत मन को आसानी से नियंत्रित किया जा सकता हैं।
इंसान नहीं उसका मन किसी का दोस्त या दुश्मन होता हैं।
इस संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है।
मन शरीर का हिस्सा है, सुख दुख का एहसास करना आत्मा का नहीं शरीर का काम है ।
आत्मा पुराने शरीर को वैसे ही छोड़ देती है, जैसे मनुष्य पुराने कपड़ों को उतार कर नए कपड़े धारण कर लेता है।
इस संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है।
मन शरीर का हिस्सा है, सुख दुख का एहसास करना आत्मा का नहीं शरीर का काम है।
मान, अपमान, लाभ-हानि खुश हो जाना या दुखी हो जाना यह सब मन की शरारत है।
वर्तमान परिस्थिति में जो तुम्हारा कर्तव्य है, वही तुम्हारा धर्म है।
मैं ऊष्मा देता हूँ, मैं वर्षा करता हूँ और रोकता भी हूँ, मैं अमरत्व भी हूँ और मृत्यु भी।
जो किसी दुसरो पर शक करता हैं, उसे किसी भी जगह पर खुशी नहीं मिल सकती।
अपने जरुरी कार्य करना, बाकी गलत कार्य करने से बेहतर हैं।
कर्म ना करने से बेहतर हैं, कैसा भी कर्म करना।
आपका निराश ना होना ही परम सुख होता हैं।
क्रोध मुर्खता को जन्म देता हैं, अफवाह से अकल का नाश, और अकल से नाश से इंसान का नाश होता हैं।
किसी भी काम में आपकी योग्यता को योग कहते हैं।
मेरे भी कई जन्म हो चुके हैं, तुम्हारे भी कई जन्म हो चुके हैं, ना तो यह मेरा आखिरी जन्म है और ना यह तुम्हारा आखिरी जन्म है ।
हे अर्जुन अगर तुम अपना कल्याण चाहते हो, तो सभी उपदेशों, सभी धर्मों को छोड़ कर मेरी शरण में आ जाओ, मैं तुम्हें मुक्ति प्रदान करुंगा ।
मोहग्रस्त होकर अपने कर्तव्य पथ से हट जाना मूर्खता है, क्योंकि इससे ना तो तुम्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी और ना ही तुम्हारी कीर्ति बढ़ेगी ।
धर्म युद्ध में कोई भी व्यक्ति निष्पक्ष नहीं रह सकता है. धर्म युद्ध में जो व्यक्ति धर्म के साथ नहीं खड़ा है इसका मतलब है वह अधर्म का साथ दे रहा है, वह अधर्म के साथ खड़ा है ।
भगवान प्रत्येक वस्तु में, प्रत्येक जीव में मौजूद हैं ।
मुझे जानने का केवल एक हीं तरीका है, मेरी भक्ति, मुझे बुद्धि द्वारा कोई न जान सकता है, न समझ सकता है ।
आत्मा का अंतिम लक्ष्य परमात्मा में मिल जाना होता है ।
मैं सभी प्राणियों को जानता हूँ, सभी के भूत, भविष्य और वर्तमान को जानता हूँ. लेकिन मुझे कोई नहीं जानता है ।
जो मुझे जिस रूप में पूजता है… मैं उसी रूप में उसे उसकी पूजा का फल देता हूँ ।
जन्म लेने वाले व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है, और मरने वाले व्यक्ति का फिर से जन्म लेना निश्चित है ।
मैं हीं इस सृष्टि की रचना करता हूँ, मैं हीं इसका पालन-पोषण करता हूँ और मैं हीं इस सृष्टि का विनाश करता हूँ ।
भगवान सभी लोगो मन में बसते हैं, और अपनी माया से उनके मन को जैसा चाहे वैसा घड़े की तरह घड़ते हैं।
सही मायने में चोर वो हैं, जो अपने हिस्से का काम किये बिना भोजन करता
कर्म किये जाओ, फल की चिंता मत करो।
मन बहुत चंचल हैं, जो इंसान के दिल में उथल-पुथल कर देता हैं।
हर कोई खाली हाथ आया था, और खाली हाथ ही इस दुनिया से जाएगा।
परिवर्तन संचार का नियम हैं, कल जो किसी और का था आज वो तुम्हारा हैं कल वो किसी और का होगा।
आत्मा अमर हैं, इसलिए मरने की चिंता मत करो।
मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया मन से मिटा दो फिर सब तुम्हारा हैं और तुम सबके हो।
भूत और भविष्य में नही, जीवन तो इस पल में हैं अर्थात वर्तमान का अनुभव ही जीवन हैं।
तू करता वही हैं, जो तू चाहता हैं, होता वही है जो मैं चाहता हूँ, तू वही कर जो मैं चाहता हूँ फिर होगा वही, जो तू चाहता हैं।
जो मन को नियंत्रित नही करते उनके लिए वह शत्रु के सामान कार्य करता हैं।
खुशियों में तो सब साथ होते हैं, असली दोस्त वही हैं जो दुःख में साथ दे।
सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति को कभी भी सुख नही मिल सकता।
नर्क के तीन द्वार हैं:वासना, क्रोध और लालच।
मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता हैं, जैसा वह विश्वास करता हैं, वैसा वह बन जाता हैं।
जानने की शक्ति झूठ को सच से पृथक करने वाली जो विवेक बुद्धि हैं, उसी का नाम ज्ञान हैं।
क्रोध से भ्रम पैदा होता हैं, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती हैं तब तर्क नष्ट हो जाता हैं जब तर्क नष्ट होता हैं तब व्यक्ति का पतन हो जाता हैं।
मन अशांत हो तो उसे नियंत्रित करना कठिन हैं लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता हैं।
तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य नही हैं, और फिर भी ज्ञान की बातें करते हो, बुद्धिमान व्यक्ति ना जीवित और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं।
खाली हाथ आये हो और खाली हाथ जाना हैं इसलिए व्यर्थ की चिंता छोड़कर व्यक्ति को हमेशा सद्कर्म करना चाहिए।
जिसे तुम अपना समझ कर मग्न हो रहे हो बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दुखो का कारण हैं।